तराना-ए-बिस्मिल
बला से हमको लटकाए अगर सरकार फांसी से
लटकते आए अक्सर पैकरे-ईसार फांसी से।
लबे-दम भी न खोली ज़ालिमों ने हथकड़ी मेरी,
तमन्ना थी कि करता मैं लिपटकर प्यार फांसी से।
खुली है मुझको लेने के लिए आग़ोशे आज़ादी,
ख़ुशी है, हो गया महबूब का दीदार फांसी से।
Hindustan Socialist Republican Army 
Comments
Post a Comment